प्राकृतिक जीवनशैली और आयुर्वेदिक सोच की पैरोकार मीना अग्रवाल ने मसालों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। उनका मानना है कि मसाले हमारे भोजन का हिस्सा नहीं, बल्कि एक औषधि हैं — जिन्हें केवल ज़रूरत पड़ने पर ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। आइए जानते हैं उनके विचारों के कुछ अहम पहलू।
मसालों का औषधीय पहलू बनाम स्वाद की लत
मीना अग्रवाल का कहना है कि मसाले हमारे आहार का पोषण तत्व नहीं हैं, बल्कि औषधीय गुणों के कारण हमारे शरीर में उत्तेजना पैदा करते हैं। आजकल ये मसाले केवल स्वाद के लिए रोज़ाना उपयोग में लाए जाते हैं, जबकि इनका इस्तेमाल औषधियों की तरह सीमित मात्रा में होना चाहिए।
उनके अनुसार मसालों से भूख और पाचन में कुछ मदद मिलती है, लेकिन इसका असली मूल्यांकन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से करें तो लाभ से कहीं ज़्यादा हानि होती है। मसालों से कृत्रिम स्वाद उत्पन्न होता है, जिससे हम स्वाभाविक स्वाद भूल जाते हैं।
बदहजमी और बीमारियों की जड़
मीना अग्रवाल चेतावनी देती हैं कि मसाले अधिक प्यास उत्पन्न करते हैं, जिससे लोग भोजन के साथ अधिक पानी पीते हैं। यह आदत बदहजमी और कई रोगों का कारण बनती है। वे कहती हैं, “मनुष्य जानबूझकर अपने भोजन में विष भरता है। मिर्च-मसाले शरीर की पाचन शक्ति को नुकसान पहुँचाते हैं और स्थायी रोगों का कारण बनते हैं।”
मसालों के औषधीय गुणों की झलक
हालाँकि मीना अग्रवाल मसालों के दुरुपयोग का विरोध करती हैं, लेकिन वे उनके औषधीय गुणों को भी मानती हैं। उदाहरणस्वरूप:
सौंफ: गैस, कब्ज और मोटापे में लाभकारी।
हींग: पेट की अग्नि बढ़ाती है, खांसी-कफ में राहत देती है।
काली मिर्च: पाचनतंत्र नियंत्रित करती है, सर्दी-खांसी में उपयोगी।
इलायची और बड़ी इलायची: पाचन में सहायक, दुर्गंध नाशक।
अजवाइन: पेट के विकार, हड्डियों और पाचन के लिए लाभकारी।
दालचीनी और लौंग: रोग प्रतिरोधक, पाचक और दर्द निवारक।
धनिया, जीरा, सोंठ, मेथी दाना, राई और हल्दी: सभी में औषधीय तत्व मौजूद हैं, जो विशेष रोगों में लाभदायक हो सकते हैं।
नेचुरोपैथी का स्पष्ट संदेश
मीना अग्रवाल के अनुसार, जो भी भोजन पानी की मांग करता है, वह शरीर के लिए नुकसानदेह है। वे स्पष्ट रूप से कहती हैं कि “स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है” और यही न्यूरोपैथी का मूल उद्देश्य है — शरीर को प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रखना।
निष्कर्ष
मीना अग्रवाल की सोच एक नई दृष्टि देती है — जहां मसालों को सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि औषधि मानकर जिम्मेदारी से प्रयोग करने का सुझाव है। यह सोच न केवल रोगों से बचाव की ओर इशारा करती है, बल्कि हमें हमारे भोजन और जीवनशैली पर पुनर्विचार करने को भी प्रेरित करती है।
मीना अग्रवाल, न्यूरोपैथी विशेषज्ञ — आगरा